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Showing posts from January, 2018

Zindagi teri saugat ho gai

कविता : - ज़िंदगी तेरी सौगात हो गई। ग़म के सफ़र  में एक दिन खुशी से मुलाकात हो गई, चलते -चलते जो तेरे बारे में बात हो गई। तेरे आँगन में बैठे थे तेरी  आमद के इंतज़ार में, पता नहीं कब दिन ढला और शाम के बाद रात हो गई। बुलबुल ने सरगोशी से कुछ कहा गुल के कान में, मुझे लगा मेरे दिल की  तेरे दिल से  बात हो गई। इस रफ़्तार - ए - ज़िंदगी में दो पल ख्‍याल जो आया तेरा, लगा बरसों से बंज़र ज़मीं पर फूलों की बरसात हो गई। तुझसे न गिला, न शिकवा, न शिकायत का हक है मुझको, पर क्यूं लगता है कि,  जैसे ये ज़िंदगी तेरी सौगात हो गई। तुझसे उम्मीद - ए - वफ़ा बेमानी है, ये खबर है मुझको, फिर भी हर महफ़िल में तुझे याद करना मेरी आदत हो गई है। मेरी मुहब्बत से तेरी रुसवाई न हो जाए, इस ख्याल से, तुझे दिल में छुपाकर तुझसे सरोकार न रखना मेरी फ़ितरत हो गई  है। अनिता जैन Weekend shayar .blogspot.in

Teri parwah kisko hai

कविता : - तेरी परवाह किसको है। तू खिलाड़ी, दिलों से खेलना तेरी आदत है, तेरे  वादों पे ऐतबार किसको है। तू मुसाफिर, भटकता  दर- ब - दर है, तेरे जाने पर ऐतराज़ किसको है। तू परिंदा आसमानी, उड़ता यहाँ -वहाँ है, तेरी परवाज़ पर इख्तियार किसको है। तू बिन  आब (पानी) का बादल , डोलता फ़िरता यूं ही है, तेरे न बरसने पर मलाल किसको है। तू न दोस्त, न दुश्मन, तुझसे नाता कुछ यूं ही है, तेरे होने या न होने की परवाह किसकोहै। - अनिता जैन weekendshayar.blogspot.in
शायर इश्क की बात करता है,  तो दुनिया सवाल करती है।  शायर दिल की बात  करता है,  तो दुनिया बवाल करती है। दिल और इश्क  तो वो शै हैं, जिन पर शायर की दुकान चलती है। -अनिता  जैन  weekendshayar .blogspot.in

Roe to ham tab bhi na the

कविताः - रोए तो हम तब भी न थे।  इतना ग़म सहकर हंसते क्यूं हो, ज़माना कहता है, रोए तो हम तब  भी न थे, जब कल ही दिल टूटा था। हंसते हैं उन  लम्हों की यादों में, जो तेरे साथ गुजारे है, रोए तो हम तब भी न थे, जब तू ग़ैर बनकर गुज़रा था। तन्हाई के आलम को, तेरे खयालों से आबाद करते है,  रोए तो हम  तब भी न थे, जब तेरा हाथ छूटा था। रोना हमारी फ़ितरत नहीं, हँसना हमारी आदत है,  रोए तो हम तब भी न थे, जब तुझको रोते देखा था।                - अनिता जैन weekend shayar .in

Toote Dil ke tukde

कविता : - टूटे दिल के टुकड़े लिए तन्हा बैठा हूं। मैं तेरी यादों का समंदर  लिए बैठा हूँ ,  हाँ, तेरे इश्क में शायर बन बैठा  हूं। जिनमें इश्क, बनकर गुलाब महका करता था, उन पुराने पन्नों की किताब लिए बैठा  हूँ ।  खुद के रंजो- ग़म की खबर नहीं मुझे,  पर तेरी खैरियत  में दस्ते- दुआ उठाए बैठा हूँ ।  जानता हॅूँ तू नहीं आएगा, आएगा तो भी क्या पाएगा,  फिर भी तेरी कुरबत  के ख्वाब सजाए बैठा हूं। इस भीड़ भरी  दुनिया के मेले में, टूटे दिल के टुकड़े लिए  तन्हा बैठा हूँ ।      _ अनिता जैन Weekend shayar .in

Khushiyon ke moti

कविता : - बटोर लाया हूँ खुशियों के मोती इस सफ़र में। मैं बेपरवाह पंछी सा उड़ता हूं गगन में, चाहे खिजां हो या या बहार हो चमन में।  पर तो काट दिए थे उनकी  बेरुखी ने,  पर उड़ सकता हॅूँ हौसले के भरम में।  जिसने पार कर लिए हों सागर दुख के, वो डूब नहीं सकता चुल्लू  भर दुख के ग़म में। वो सितम करते हैं अपने झूठे गुरुर के दम पे,  मैं हंसकर छोड़  देता हूँ उनको दलदल - ए - शरम में। सैलाब - ए - ग़म पार कर आया हूं जतन से, बटोर लाया हूं खुशियों के मोती इस सफ़र में। -अनिता  जैन Weekendshayar .blogspot.in

Wo sab samajh jati hai

कविता : - वो सब समझ जाती  है। वो  आँखों से बात करती  है, सीधा  दिल में उतर जाती है। वो निगाहों से बात   करती है, मेरी  निगाह समझ जाती है। वो चलते -चलते रुक जाती है,  मेरी आहट सुनकर। फिर बिना मुझे देखे चल पड़ती है,  मेरी धड़कन उसकी धड़कन समझ जाती है। मुझे रूबरू पाकर उसकी, निगाह उठते-उठते झुक जाती है। और मेरी रूह उसकी रूह से गुफ्तगू करके  सब समझ  जाती है। मुझसे निगाह मिलती है, तो कहते-कहते बात भूल जाती है। और  मेरी मुस्कुराहट की गहराई से, वो अपनी नादानी समझ जाती है।  कभी -कभी वो दिल को संभाल कर,  सीधा आंखों  में देखती है। और  मेरी  ज़ुबान की लड़खड़ाहट में, मेरे जज़्बों का बयां समझ जाती है। -अनिता जैन Weekend shayar .blogspot.in

Muhabbat

कविता : - मुहब्बत ज़िंदगी वस्ले - यार के बिना भी बसर होती है,  मुहब्बत दिलों की दौलत है कोई इल्ज़ाम नहीं, जो सिसक -सिसक कर अंधेरों में आह भरती है। एहसास- ए - कुरबत की खुशी दिलों में बसी होती है,  मुहब्बत ख़ुदा की बंदग़ी है कोई रुसवाई नहीं, कि,  इंसान की हिम्मत को तोड़कर रख सकती है। धड़कनों की ग़म - ए- फ़ुरकत से गुफ्तगू होती है,  मुहब्बत का ग़म भी गुल-ए - गुलिस्तां है दश्त - ए-सहरा नहीं, जो उड़-उड़कर हर - सू बिखर जाती है।                                                    -अनिता जैन।

Kitab

कविता : - किताब  आज हाथ लगी एक पुरानी किताब ,  जो साथ थी कॉलेज के ज़माने से ।  पन्ना -दर - पन्ना पलटा जो उसे, कितने किस्से निकल  आए बीते ज़माने से। एक पन्ना, जिस पर सहेली के हाथों लिखा  सवाल था, उसके साथ बिताए हर पल की तस्वीर बनाता चला गया।  एक पन्ना,  जिस पर तेरे नाम पर मेरा नाम लिखा था,  उस खुशी, जो हमारे तकरीबन हमनाम होने की थी, से  भिगो गया। एक पन्ना, जिस पर बचाया हुआ जेब खर्च अब भी रखा था, उस तोहफ़े, जो कभी खरीदा न गया, की याद दिला गया।  एक पन्ना, जिस पर कुछ सूखे हुए आसुओं के निशान थे,  तेरे किसी और का होने का एहसास दिला गया।                                                            -अनिता जैन

Maine kab hear mani thi

कविता : - मैंने कब हार मानी थी। ज़िंदगी तेरा  सफ़र  न  सीधा  चला  है कभी, कभी  रास्ते  आसान  तो मंजिलें दूर  थीं, कभी मंजिलें खूबसूरत  तो राहें कांटों  भरी  थीं। तूने खुद ही कभी राह में  फूल  बिछा दिए,  तो  कभी  फूलों के बीच  कांटों  की  चुभन  दी थी, पाँव में छाले दिए पर  शर्त  चलने  की रखी थी। उससे  मिलने की  न ख्वाहिश की थी मैंने  कभी,  ये तो  तूने ही अपना दिल बहलाने को  साजिश की  थी, दिलों  में  आस जगाकर दिल तोड़  देना तेरी  पुरानी  आदत जो थी। तूने  खुद  ही  ख्वाब  बुनने को  ताने -बाने दिए, फिर  खुद ही  गांठ पर गांठ  लगाकर बुनाई तोड़ी थी, और तेरी ही सलाइयाँ ताउम्र उलझे धागों को न सुलझा पाई थीं। हम न समझे ज़िंदगी तेरा  खेल कभी, खुशियाँ देना तेरी फ़ितरत है या गमों की ताबीर लिखना तेरी आदत थी, तू न हारी ज़िंदगी तो मैंने भी कब हार मानी थी। -अनिता जैन Weekend Shayar .Blogspot .in

Main hara zamana hi jeet gaya

कविता : - मैं हारा ज़माना ही जीत गया। कुछ ही दिन बीते तुझे देखे, पर लगता है ज़माना बीत गया। जो तेरी आंखों में प्यार का समंदर था, लगता है उसका कतरा - कतरा रीत गया। मैंने तुझे चुराना चाहा इस ज़माने से, पर मैं हारा ज़माना ही जीत गया। जिसमें तेरी- मेरी धड़कनों की ताल थी, जाने होठों से कहा खो वो गीत गया। जिसकी गुनगुनी धूप में निहारता था पल - पल तुझे, इस बार मिला नहीं,  जाने कहाँ वो शीत गया।                                  -अनिता  जैन  Weekend shayar . blogspot.com
कविताः - मैं ज़िंदगी से दूर निकल गया।  तू मेरी राहों में  खड़ा तो था मुकम्मल होने को,  पर मैं हवा की तरह तेरे दामन को छूकर निकल गया।  तूने लब खोले तो थे दिल की बात कहने को, पर मैं ज़रुरी बातें ही करके निकल गया।  तूने नज़रों से की तो थी कोशिश कुछ कहने की,  पर मैं तो अनजान बन करके ही निकला गया। तू मेरे सामने आया तो था बार बार मेरी तवज्जो पाने को, पर मैं दूसरों से ही गुफ्तगू करके  निकल गया।  तेरी नज़रों की शरारत जा लगी थी मेरी शराफ़त को,  पर अपनी शराफ़त र्मे मैं तो ज़िंदगी से दूर निकल गया। - अनिता जैन Weekend shayar .blogspot.in

Zindagi apna safar tay karti to hai

कविताः - ज़िंदगी अपना सफ़र तय करती तो है। कतरों में ही सही, ज़िंदगी मुस्कुराती तो है।  हम न करें शरारत, किसी की शरारत हमें भाती तो है। दावा करें लाख भूल जाने का तुझे, हर पल तेरी याद सताती तो है।  काश, किसी राह में, किसी मोड़ पर तेरा दीदार हो जाए, ऐसी हसरत रह - रहकर दिल में आती तो है।  तेरी तस्वीर से दिल  को बहलाने की कोशिश, तुझे पाने की चाहत  और बढ़ाती तो है।  तुझसे दूर निकल जाने की कोशिश, और शिद्दत से तेरे पास लाती तो है। दिलो- दिमाग की जद्‌दोजहद में ज़िंदगी,  कभी सहरा तो कभी चमन बनकर भरमाती तो है।  सच है हसरतों और तमन्नाओं के जनाजे ढोकर भी, जिंदगी अपना सफ़र तय करती तो है।                                                            -अनिता जैन |

Zindagi khel nahin imtihan hai

कविता : - ज़िंदगी खेल नहीं इम्तिहान है।   मंज़िल की राह दिखा सकता है कोई, रास्ता खुद तय करना पड़ता है। रास्ते के कांटों को खुद ही चुन चुनकर हटाना पड़ता है। हवाएं मुनासिब नहीं होती हमेशा, हवा का रुख खुद मोड़ना पड़ता है। दो पल साथ दे दे कोई, पर अपना सफ़र खुद तय करना पड़ता है। कभी नर्म शाख की तरह झुकना, तो कभी नौकापाल सा तनना पड़ता है। कभी मोम सा पिघलना, तो कभी चट्टान सा टिकना पड़ता है। कभी बहुत कुछ पाना,  तो कभी पाया हुआ भी खोना पड़ता है। ज़िंदगी खेल नहीं इम्तिहान है, हर रोज़ खुद को साबित करना पड़ता है।                          -                                             अनिता जैन

Kab tak apna daman bacha payenge

                          कविता  अंगुलियों पर गिनने लायक ही लोग बचे हैं,  जिन्हें गर्व है अपनी ईमानदारी और मासूमियत पर।  लगे हैं वे भरसक बचाने अपने इन गुणों को,  हर त्याग करके, हर वार सहके ।  किन्तु कदम-कदम पर बैठे झूठे, मक्कार व चालबाजों की  जालसाजी भरी चालों से, भला कब तक अपना दामन बचा पाएंगे?  जहर बुझे तीरों के शरीर में घुसने पर,  स्वयं को जहर के प्रभाव से कैसे बचा पाएंगे? शायद ये वीर अभिमन्यु भी भीड़ का एक हिस्सा बन जाएंगे।  शायद ये भी मासूमों, ईमानदारों पर जहर बुझे तीर बरसाने वालों की कतार में खड़े हो जाएंगे।  ये अभिमन्यु कई और अभिमन्युओं को जहरीला बनाकर छोड़ जाएंगे।  आने वाले अभिमन्युओं को जहरीला बनाने को, जहरीले लोगों की कतार को और बढ़ाने को।  जब तक इस धरती का कण- कण जहरीला नहीं  हो जाएगा,  इस मां का दामन तार - तार नहीं हो जाएगा।                                                         -अनिता जैन

Mulaqat

तुझसे मुलाकात के मुन्तज़िर हम नही, तेरे दीदार को बेकरार हम नहीं l मुहब्बत इतनी गहरी है कि,  तुझे पाने के तलबगार  हम नहीं। इत्तेफाकन तू मुकाबिल आ भी जाए,  तो तेरी फ़ुरकत से रखेंगे सरोकार नहीं। दिल के आईने में बसी तेरी तस्वीर ही काफ़ी है, ताउम्र कुछ और पाने के तलबगार हम नहीं।  दिल तो तेरी यादों के खंडहर से ही गुलज़ार है,  नए शीश महल बनाने को बेगार हम नहीं। तेरे ख्वाबों के मेले ही काफ़ी हैं सुकून- ए- रूह को,  तेरी सोहबत के साए के बेजार हम नहीं।                                              -अनिता जैन

Kab tak apna daman bacha payenge

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