कविताः - मैं ज़िंदगी से दूर निकल गया।
तू मेरी राहों में खड़ा तो था मुकम्मल होने को,
पर मैं हवा की तरह तेरे दामन को छूकर निकल गया।
तूने लब खोले तो थे दिल की बात कहने को,
पर मैं ज़रुरी बातें ही करके निकल गया।
तूने नज़रों से की तो थी कोशिश कुछ कहने की,
पर मैं तो अनजान बन करके ही निकला गया।
तू मेरे सामने आया तो था बार बार मेरी तवज्जो पाने को,
पर मैं दूसरों से ही गुफ्तगू करके निकल गया।
तेरी नज़रों की शरारत जा लगी थी मेरी शराफ़त को,
पर अपनी शराफ़त र्मे मैं तो ज़िंदगी से दूर निकल गया।
- अनिता जैन Weekend shayar .blogspot.in
तू मेरी राहों में खड़ा तो था मुकम्मल होने को,
पर मैं हवा की तरह तेरे दामन को छूकर निकल गया।
तूने लब खोले तो थे दिल की बात कहने को,
पर मैं ज़रुरी बातें ही करके निकल गया।
तूने नज़रों से की तो थी कोशिश कुछ कहने की,
पर मैं तो अनजान बन करके ही निकला गया।
तू मेरे सामने आया तो था बार बार मेरी तवज्जो पाने को,
पर मैं दूसरों से ही गुफ्तगू करके निकल गया।
तेरी नज़रों की शरारत जा लगी थी मेरी शराफ़त को,
पर अपनी शराफ़त र्मे मैं तो ज़िंदगी से दूर निकल गया।
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