Kab tak apna daman bacha payenge
कविता
अंगुलियों पर गिनने लायक ही लोग बचे हैं,
जिन्हें गर्व है अपनी ईमानदारी और मासूमियत पर।
लगे हैं वे भरसक बचाने अपने इन गुणों को,
हर त्याग करके, हर वार सहके ।
किन्तु कदम-कदम पर बैठे झूठे, मक्कार व चालबाजों की
जालसाजी भरी चालों से,
भला कब तक अपना दामन बचा पाएंगे?
जहर बुझे तीरों के शरीर में घुसने पर,
स्वयं को जहर के प्रभाव से कैसे बचा पाएंगे?
शायद ये वीर अभिमन्यु भी भीड़ का एक हिस्सा बन जाएंगे।
शायद ये भी मासूमों, ईमानदारों पर जहर बुझे तीर बरसाने वालों की कतार में खड़े हो जाएंगे।
ये अभिमन्यु कई और अभिमन्युओं को जहरीला बनाकर छोड़ जाएंगे।
आने वाले अभिमन्युओं को जहरीला बनाने को,
जहरीले लोगों की कतार को और बढ़ाने को।
जब तक इस धरती का कण- कण जहरीला नहीं हो जाएगा,
इस मां का दामन तार - तार नहीं हो जाएगा।
-अनिता जैन
अंगुलियों पर गिनने लायक ही लोग बचे हैं,
जिन्हें गर्व है अपनी ईमानदारी और मासूमियत पर।
लगे हैं वे भरसक बचाने अपने इन गुणों को,
हर त्याग करके, हर वार सहके ।
किन्तु कदम-कदम पर बैठे झूठे, मक्कार व चालबाजों की
जालसाजी भरी चालों से,
भला कब तक अपना दामन बचा पाएंगे?
जहर बुझे तीरों के शरीर में घुसने पर,
स्वयं को जहर के प्रभाव से कैसे बचा पाएंगे?
शायद ये वीर अभिमन्यु भी भीड़ का एक हिस्सा बन जाएंगे।
शायद ये भी मासूमों, ईमानदारों पर जहर बुझे तीर बरसाने वालों की कतार में खड़े हो जाएंगे।
ये अभिमन्यु कई और अभिमन्युओं को जहरीला बनाकर छोड़ जाएंगे।
आने वाले अभिमन्युओं को जहरीला बनाने को,
जहरीले लोगों की कतार को और बढ़ाने को।
जब तक इस धरती का कण- कण जहरीला नहीं हो जाएगा,
इस मां का दामन तार - तार नहीं हो जाएगा।
-अनिता जैन
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