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सफ़र - ए-मुहब्बत

सफ़र - ए-मुहब्बत : - आ इस तरह तुझसे बात करें कि, तुझे लफ्ज़ों में ढालें पर लफ़्ज़ों को ज़ुबां न दें। आ इस तरह तुझसे बात करें। आ इस तरह तेरा दीदार करें कि, तुझे आँखों में बसाएं पर तुझी से आंखें चार न करें। आ इस तरह तेरा दीदार करें। आ इस तरह तुझसे मुलाकात करें कि, हर जगह तेरी ही बात करें पर तुझी से बात न करें। आ इस तरह तुझसे मुलाकात करें। आ इस तरह तुझे दुआओं में सजाएं कि, दिन - रात तेरी खैरियत रब से माँगें पर तुझसे ही तेरी ख़ैरियत न पूछें। आ इस तरह तुझे दुआओं में सजाएं । आ इस तरह सफ़र - ए -मुहब्बत तय करें कि, तुझे दिल में क़ैद करलें पर तुझीसे मुहब्बत का इज़हार न करें। आ इस तरह सफ़र -ए - मुहब्बत तय करें। अनिता जैन @ weekendshayar.blogspot.in and weekendshayar.com 

Hamari Muhabbat

                              हमारी मुहब्बत  तेरा मिलना रब की रज़ा थी, बिछड़ना उसकी दी सज़ा थी।हमने कुबूल किया दोनों को कि,हमारी मुहब्बत बहुत पाकीज़ा थी। तेरी-मेरी मुहब्बत रूह और दिल पर लिखी ज़हीन सी ताबीर थी। न फ़ट सके न मिट सके कि, ये न कागज़ी थी न कलमी थी। अब दिल के दरके शीशे जुड़ न पाएंगे कि, ये चोट दिल पर आख़री थी। न और कोई सूरत दिल में बसा पाएंगे कि, शीशा  - ए - दिल में बसी तेरी सूरत आख़री थी। अब ज़माने के सितम हँसकर झेल जाएंगे कि, जिसे वो गुनाह समझे, वो हमारी पाक मुहब्बत थी। न कोई गिला न शिकवा  करने की तमन्ना  अब कि, हमारी मुहब्बत इज़हार-ओ-इकरार   की मुहताज़ न थी। जो चार दिन गुज़ारे तेरे साथ लगता है, वो मेरी पूरी ज़िंदग़ीथी।ज़माने के सितम हसीं थे, धूप भी चाँदनी सी नर्म थी। रूह-ओ- दिल  को  सुकून  था, न कोई  आस  न तिष्नगी थी। तेरे ही दम से हवाएँ पुर सुकून और  कूचा- ए- दिल  में हर लम्हा बहार थी। कोई भी इल्ज़ाम अब हमें न तोड़ पाएगा कि, हमारी मुहब्बत काबिल-ए- एहतराम थी। जितना ज़माना गिराएगा हम  उतना ही ऊपर  उठ जाएंगे कि, हौसला बढ़ाती  हैं दिल में  महफूज़ वो  यादें, जो