Zindagi teri saugat ho gai

कविता : - ज़िंदगी तेरी सौगात हो गई।
ग़म के सफ़र  में एक दिन खुशी से मुलाकात हो गई,
चलते -चलते जो तेरे बारे में बात हो गई।

तेरे आँगन में बैठे थे तेरी  आमद के इंतज़ार में,
पता नहीं कब दिन ढला और शाम के बाद रात हो गई।

बुलबुल ने सरगोशी से कुछ कहा गुल के कान में,
मुझे लगा मेरे दिल की  तेरे दिल से  बात हो गई।

इस रफ़्तार - ए - ज़िंदगी में दो पल ख्‍याल जो आया तेरा,
लगा बरसों से बंज़र ज़मीं पर फूलों की बरसात हो गई।

तुझसे न गिला, न शिकवा, न शिकायत का हक है मुझको,
पर क्यूं लगता है कि,  जैसे ये ज़िंदगी तेरी सौगात हो गई।

तुझसे उम्मीद - ए - वफ़ा बेमानी है, ये खबर है मुझको,
फिर भी हर महफ़िल में तुझे याद करना मेरी आदत हो गई है।

मेरी मुहब्बत से तेरी रुसवाई न हो जाए, इस ख्याल से,
तुझे दिल में छुपाकर तुझसे सरोकार न रखना मेरी फ़ितरत हो गई  है।
अनिता जैन Weekend shayar .blogspot.in

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