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मुहब्बत का इज़हार

मुहब्बत का इज़हार मेरे लिखे शेर पढ़कर किसी ने पूछा, बताएं मुहब्बत का इज़हार कैसे किया करते हैं?  हमने मुस्कुरा कर कहा कि, हम ही कर देते जो जानते कि, मुहब्बत का इज़हार कैसे किया करते हैं। अनिता जैन weeleendshayar

ग़ज़लः- कुछ इस तरह गुज़रती है ज़िंदग़ी आजकल।

ग़ज़लः- कुछ इस तरह गुज़रती है ज़िंदग़ी आजकल।    न सुबह रुमानी न शाम सुरमई लगती है आजकल, कुछ इस तरह गुज़रती है ज़िंदग़ी आजकल। टूटकर दिल हो गया है यूं बेज़ार तुझसे, कि,तेरी दर पर उठती नहीं पलक आजकल। निग़ाह-ए -शोख़ नापती थी ज़मीनो-असमां पल में, सन्नाटों से चलकर सन्नाटों पे ख़त्म होती है नज़र आजकल। कभी वक्त को रोकने की ख़वाहिश होती थी तुझे रूबरू पाकर, हर लम्हा बिना जिए गुज़ार देने की कोशिश होती है आजकल। तुझसे मिलने का इंतज़ार होता था बिछड़ने के पल से, ख्यालों में भी तेरी आमद रुला देती है आजकल। जिस मिट्टी में ढूँढते थे तेरे आसपास होने के निशां, वो मिट्टी बेवज़ह कदमों से लिपटती सी लगती है आजकल। हवाएँ जो सहलाती थीं चेहरे को नर्मी से, वो हवाएँ अंगार सी लगती हैं आजकल। महफ़िलें जो ज़िंदादिली से  सराबोर लगती थीं, ज़िंदग़ी में एक ख़लिश सी छोड़ जाती है आजकल। अनिता जैन Weekendshayar

मेरी जान तू उदास क्यूं है?

मेरी जान तू उदास क्यूं है? दिल को करती है छलनी,हटा इसे, चेहरे पे ये मायूसी क्यूं है? जीना मुश्किल करती है,तेरे माथे पे शिकन, आवाज़ में बेबसी क्यूं है? मुहब्बत के नग़मे पर भी तेरे साज़ से बजती बेकसी क्यूं हैं? हूँ हैरान, हूँ परेशान,मेरी जान तू उदास क्यूं है? उजड़ी ज़मीनों पर सरसब्ज़ बाग़ खिलाने की कोशिश क्यूं है? ठूंठ पड़े पेड़ों पर पंछियों को बसाने की ख़्वाहिश क्यूं है? भरे गुलिस्तां में बैठा तू फूलों और कलियों से बेज़ार क्यूं है? भरले दामन में खिलती बहार को, मेरी जान तू उदास क्यूं है? सुनहरे कल का पैग़ाम लाई चिड़ियों का गान अनसुना क्यूं है ?नूर - ए-शम्स का इस्तकबाल कर,रोशनी से अनजाना क्यूं है? कलकल करती नदियों का संगीत सुन, तू इतना अनमना   क्यूं  है। इनके साथ मिला ले ताल से ताल , मेरी जान तू उदास क्यूं है? खुश होता हूँ तेरी ख़ुशी में,सोचे ज़माना ये खुश क्यूं है?कामयाबी पर झूमता हूँ तेरी तो बवाल कि ये हँसता क्यूं है? यूं रहकर रूठा- रूठा सा मेरी खुशियों का करता कत्ल-ए- आम क्यूं है? मेरी तरह सीख ले हँसकर जीना, मेरी जान तू उदास क्यूं है? जिन रास्तों को भूल गई परछाई भी मे

इस बात का शुक्रगुज़ार रहूँगा।

इस बात का शुक्रगुज़ार रहूँगा। अगर तू साथ है तो मुश्किल डगर भी आसान है, तेरे कदमों की चाप से मिलती मेरे कदमों को जान है। शायद लब से न कहूँ पर तू ही मेरा दिल मेरी जान है, जो न पाऊँ आसपास तुझको लगता जहां सुनसान है। जो हम साथ -साथ चलें तो बियाबां में भी बहार है, हो जहां साथ पर तुम बिन जीना दुश्वार है। हर सुबह खिलती है तब जब होता तेरा दीदार है, तेरी पलकों के परदे गिरने पर शाम होती ढलने को बेकरार है। तू जो साथ चलेगी जीवन मधुबन सा खिलता रहेगा, हर खुशी बढ़ती रहेगी हर ग़म घटता रहेगा। तुझसे ही मेरे घर का कोना- कोना संवरता रहेगा, जीता हूँ इसी आस में कि, ताउम्र तेरा प्यार बरसता रहेगा। जीवन की ढलती साँझ में तू मेरे साथ होगी जब थक कर बैठूंगा, हर नज़ारा तू मेरी मैं तेरी  नज़रों देखूँगा। बिन कहे हर बात तू मेरी मैं तेरी समझूँमा, ख़ुदा ने तुझे बख़्शा मुझको,इस बात का शुक्रगुज़ार रहूँगा। अनिता जैन Weekendshayar

तुझे इस जहां के लिए मांगा करते हैं।

तुझे इस जहां के लिए मांगा करते हैं।  न हम मुकम्मल हुए तो क्या ग़म है, तुझे आबाद देखकर ही खुश  रहा करते हैं। तुझे फूलों भरा चमन मिले ये दुआ  है, उजाड़ बियाबान में भी हम तो खुशी से सफ़र करते हैं। न आज़माओ हम पे ज़हर- ओ-खंजर,  इस सुर्ख़ाब रुख पर हम तो यूं ही जां निसार करते  हैं। तुझे क्या ज़रूरत खुशियाँ हमसे मांगने की, तेरी मुस्कुराहट पर हम तो अपना जहां कुर्बान करते हैं। न बैठ तू उदास और बेज़ार ऐसे, तेरी मुस्कुराहट को हम तो हफ़्तों तरसा करते हैं। न तोहफों से तौला कर मेरे इश्क को, तेरे नूर- ए-नज़र से ही हम तो  अमीर हुआ करते हैं। न वहम कर मेरे नेक इरादा- ओ- करम पे,  तुझे खुद के लिए नहीं हम तो जहां के लिए मांगा करते हैं। अनिता जैन weekendshayar word-meaning:- 1.मुकम्मल:- complete 2.उजाड़:- destroyed / barren 3.बियाबान :- desert 4. खंजर:- dragger/ कटार 5.सुर्खाब रुख़ :- गुलाबी चेहरा 6.बेज़ार :- unhappy/ sick नाख़ुश  7. नूर- ए- नज़र :- आँखों की चमक
कविता: तुझे ही ख़ुदा समझ बैठा। तेरे नाम की अर्ज़ियाँ ख़ुदा को देते-देते, ख़ुदा को ही भूल गया। अरसा बीता उसकी चौखट पर सर झुकाए,तुझे ही अपना ख़ुदा समझ बैठा। तेरे इश्क में डूबे शेर लिखते- लिखते,ख़ुदा की बंदग़ी भूल गया। दिन रात सोचता हूँ तुझे,तुझे ही पाक़ क़ुरान समझ बैठा। उस पुरानी झील के किनारे बैठ,लहरों को ताकना भूल गया। डूब जाता हॅूँ तेरी आँखों में, तुझे ही अपना समंदर समझ बैठा। आसमां से दिन - रात का जो राब्ता  था, सब भूल गया। तू ही शम्स तू ही क़मर, तुझे ही अपना आसमान समझ बैठा। तन्हाई के आलम में ख़ुद को,अकेला समझना भूल गया। तेरी यादों की तस्वीरों से घिरा, ख़ुद को आबाद समझ बैठा। तेरे इश्क से दुनिया में रुसवाई होगी मेरी, ये भी भूल गया। तेरे ख़्वाबों में खोए-खोए मुस्कुराने को, अपनी पूरी ज़िंदगी समझ बैठा। इश्क को मंज़िल इज़हार से मिलती है,ये पूरी तरह से भूल गया। तेरे ख़्यालों में जीने में ही,अपनी मुहब्बत को मुकम्मल समझ बैठा। अनिता जैन weekendshayar Word meaning :- शम्स - सूरज (Sun)  क़मर - चाँद (moon)

कविता:- कितनी कोशिशें !!??

कविता:- कितनी कोशिशें !!??  कितनी कोशिशों कीं तेरे नाम को ज़ुबां पर न लाने  की, काश एक कोशिश तुझे  पुकारने की की होती, तो ज़िंदग़ी कुछ और  होती। कितनी कोशिशें कीं तेरी आँखों से छलकते प्यार को नकारने की, काश एक कोशिश आँखों में डूबने की की होती, तो जिंदग़ी कुछ और होती। कितनी कोशिशें कीं तेरी चाप सुनकर रास्ते बदलने की, काश एक कोशिश तेरे साथ चलने की की होती, तो ज़िंदग़ी कुछ और होती। कितनी कोशिशें कीं तेरी आमद-ए-महफ़िल से कतराने की, काश एक कोशिश शिरकत की की होती,  तो  ज़िंदग़ी कुछ और होती। कितनी कोशिशें की अपने दिल में बसे तेरे प्यार को झुठलाने की, काश एक कोशिश इसे तेरे दिल की राह बताने की की होती, तो ज़िंदग़ी कुछ और होती। कितनी कोशिशें कीं उमंगों के पर कतरने की, काश एक कोशिश इनको परवाज़ देने की की होती, तो ज़िंदग़ी कुछ और होती। कितनी कोशिशें कीं तुझसे दूर जाने की, काश एक कोशिश पास आने की की होती, तो ज़िंदग़ी कुछ और होती। अनिता जैन weekendshayar. Blogspot.in