तू मुझे याद आता रहा।
कविताः तू मुझे याद आता रहा। मैं तेरे दिल की सुनता रहा,तू मेरे दिल की सुनता रहा। आँखों की बोली तू मेरी मैं तेरी समझता रहा। जाने मुहब्बत थी या वक़्ती जज़्बा जिसे दिल प्यार समझता रहा। कोई वजन- ओ - पैमाइश नहीं मुहब्बत में,मैं तुझे तू मुझे 'बहुत' चाहता रहा। मुहब्बत दिल का भरम है,ये दुनिया को समझाता रहा। अरे करो तो दुनिया में क्या काम कम है, ये सिखाता रहा। पर खुद अपना दिल ही बेवफ़ा निकला,अपनी मनमानी करता रहा। मैं फ़र्ज़परस्ती का फ़साना सुनाता रहा, ये मुहब्बत के नग़मे गाता रहा। शर्म के हिजाब में कैद हो पल्लू की गिरहें बाँधता खोलता रहा।झुकी पलकों से इज़हार किया ज़ुबान से इनकार करता रहा। जा न सका दूर तुझसे हर कोशिश जाने की करता रहा। बिन कहे- सुने तू चल पड़ा मैं ताकता रहा,तू दूर जाता रहा। मुहब्बत की किस्मत मैं जुदाई और नाकामी लाज़मी है,खुद को समझाता रहा। अच्छा हुआ लुका-छिपी का ये सिलसिला खत्म हुआ, दिल को मनाता रहा। आज़ादी मना कि,एक फलसफ़ा खत्म हुआ, ये दोहराता रहा।पर झ्क पल को भी न ये फसाना खत्म हुआ, तू मुझे याद आता रहा, तू मुझे याद आता रहा। -अनिता जैन weekendshayar