Posts

Showing posts from July, 2018

तू मुझे याद आता रहा।

कविताः तू मुझे याद आता रहा।  मैं तेरे दिल की सुनता रहा,तू मेरे दिल की सुनता रहा।  आँखों की बोली तू मेरी मैं तेरी समझता रहा। जाने मुहब्बत थी या वक़्ती जज़्बा जिसे दिल प्यार समझता रहा। कोई वजन- ओ - पैमाइश नहीं मुहब्बत में,मैं तुझे तू मुझे 'बहुत' चाहता रहा। मुहब्बत दिल का भरम है,ये दुनिया को समझाता रहा। अरे करो तो दुनिया में क्या काम कम है, ये सिखाता रहा। पर खुद अपना दिल ही बेवफ़ा निकला,अपनी मनमानी करता रहा। मैं फ़र्ज़परस्ती का फ़साना सुनाता रहा, ये मुहब्बत के नग़मे गाता रहा। शर्म के हिजाब में कैद हो पल्लू की गिरहें बाँधता खोलता रहा।झुकी पलकों से इज़हार किया ज़ुबान से इनकार करता रहा। जा न सका दूर तुझसे हर कोशिश जाने की करता रहा। बिन कहे- सुने तू चल पड़ा मैं ताकता रहा,तू दूर जाता रहा। मुहब्बत की किस्मत मैं जुदाई और नाकामी लाज़मी है,खुद को समझाता रहा। अच्छा हुआ लुका-छिपी का ये सिलसिला खत्म हुआ, दिल को मनाता रहा। आज़ादी मना कि,एक फलसफ़ा खत्म  हुआ, ये दोहराता रहा।पर झ्क पल  को भी न ये फसाना खत्म हुआ, तू मुझे याद आता रहा, तू मुझे याद आता रहा।  -अनिता जैन weekendshayar

इस जहाँ से किनारा कर लूँ

इस जहाँ से किनारा कर लूँ जिंदगी का सफ़र तन्हा मुश्किल लगता है मुझ को, आ कि,हमसफ़र तेरा हाथ थामकर जहाँ से किनारा कर लूँl पथरीली राहों में डगमगाऊँ तो तू थाम ले मुझको, आ कि,सर तेरे काँधे पे रखके शाम को सहर कर लूँl इज़हार- ए -मुहब्बत न करूँ ज़ुबां से तू खुद ही समझ ले मुझको, आ कि, इस जहाँ से चुराकर तुझे निगाहों में भर लूँl जिंदग़ी के दिए ज़ख्मों से दिल जो दर्द दे मुझको, आ कि, चार अश्क तेरे काँधों पे बहा के मैं सुकून कर लूँl तू साथ होता है तो हर राह आसान लगती है मुझको, आ कि, भुलाकर शिकवे -गिले सफर -ए-ज़िंदग़ी तेरे संग तय कर लूँl जो ख़ुशियाँ दामन में भर-भर कर दी तूने मुझको, आ कि,उनसे चमन सजाके अपना अपने नसीब पर फ़क्र कर लूँl मेरे घोंसले के नन्हें परिंदे उड़ चले अपना नशेमन बसानेको, आ कि, तुझसे गुफ्तगू कर उनका बचपन याद कर लूँl आ कि, तेरा हाथ थामकर जहाँ से किनारा कर लूँl  अनिता जैन weekendshayar.blogspot.in

कविताः हमेशा के लिए सो जाने दो

कविताः हमेशा के लिए सो जाने दो  झूठी हँसी में लिपटे तेरे-मेरे अश्कों की नुमाइश बहुत हुई।तबाह जिस्मो - रूह के सायों से ज़िंदग़ी के गुलशन  की बरबादी बहुत  हुई। दिल कहता है अब बेमौसम बादल बरस जाने की रुत आने दो।  बेताबी कहती है अब खयालों के जंगलों से हकीकतों के रास्ते तय पा जाने दो ।  तड़पते अरमानों की झुलसती आग मेें खुद को झोंकने की कवायद बहुत हुई। बेलौस बहते आँसुओं के दरिया में दरो- दीवार के साथ डूब जाने की कोशिश बहुत हुई। माथे की शिकन मिटाकर कोयल के मीठे नग़मे के साथ प्यार का साज़ बज जाने दो। मुस्कुराकर लाल पीले फूलों को इन ज़ुल्फ़ों में सज जाने दो बारिश के मौसम के साथ आँसुओं के सैलाब बहा लेने  की रवायत बहुत हुई। हँसते - गाते पंछियों के सुर में अपनी आहें मिलाकर छुपाने की नाकाम साज़िश बहुत हुई।  तुम्हारी जुदाई का ग़म  सहकर मैं ज़िंदा हॅूँ इस बात की दावत हो जाने दो। मुझसे बिछड़ कर तुम खुश और आबाद हो इस बात का जश्न हो जाने दो।  टूटे दिल  की  धमक से मुरझाए चेहरे को झूठे श्रृंगार से सजाने  की तकलीफ़ बहुत हुई।  खुद को  फर्ज़ की  भट्टी में  झोंककर तुझे  भूल जाने  की  कसरत बहु