Zindagi khel nahin imtihan hai
कविता : - ज़िंदगी खेल नहीं इम्तिहान है।
मंज़िल की राह दिखा सकता है कोई,
रास्ता खुद तय करना पड़ता है।
रास्ते के कांटों को खुद ही चुन चुनकर हटाना पड़ता है।
हवाएं मुनासिब नहीं होती हमेशा,
हवा का रुख खुद मोड़ना पड़ता है।
दो पल साथ दे दे कोई,
पर अपना सफ़र खुद तय करना पड़ता है।
कभी नर्म शाख की तरह झुकना,
तो कभी नौकापाल सा तनना पड़ता है।
कभी मोम सा पिघलना,
तो कभी चट्टान सा टिकना पड़ता है।
कभी बहुत कुछ पाना,
तो कभी पाया हुआ भी खोना पड़ता है।
ज़िंदगी खेल नहीं इम्तिहान है,
हर रोज़ खुद को साबित करना पड़ता है। - अनिता जैन
मंज़िल की राह दिखा सकता है कोई,
रास्ता खुद तय करना पड़ता है।
रास्ते के कांटों को खुद ही चुन चुनकर हटाना पड़ता है।
हवाएं मुनासिब नहीं होती हमेशा,
हवा का रुख खुद मोड़ना पड़ता है।
दो पल साथ दे दे कोई,
पर अपना सफ़र खुद तय करना पड़ता है।
कभी नर्म शाख की तरह झुकना,
तो कभी नौकापाल सा तनना पड़ता है।
कभी मोम सा पिघलना,
तो कभी चट्टान सा टिकना पड़ता है।
कभी बहुत कुछ पाना,
तो कभी पाया हुआ भी खोना पड़ता है।
ज़िंदगी खेल नहीं इम्तिहान है,
हर रोज़ खुद को साबित करना पड़ता है। - अनिता जैन
Reality of life..good
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