Mulaqat

तुझसे मुलाकात के मुन्तज़िर हम नही,
तेरे दीदार को बेकरार हम नहीं l
मुहब्बत इतनी गहरी है कि,
 तुझे पाने के तलबगार  हम नहीं।
इत्तेफाकन तू मुकाबिल आ भी जाए,
 तो तेरी फ़ुरकत से रखेंगे सरोकार नहीं।
दिल के आईने में बसी तेरी तस्वीर ही काफ़ी है,
ताउम्र कुछ और पाने के तलबगार हम नहीं।
 दिल तो तेरी यादों के खंडहर से ही गुलज़ार है,
 नए शीश महल बनाने को बेगार हम नहीं।
तेरे ख्वाबों के मेले ही काफ़ी हैं सुकून- ए- रूह को,
 तेरी सोहबत के साए के बेजार हम नहीं।
                                             -अनिता जैन

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इस बात का शुक्रगुज़ार रहूँगा।