Maine kab hear mani thi

कविता : - मैंने कब हार मानी थी।
ज़िंदगी तेरा  सफ़र  न  सीधा  चला  है कभी,
कभी  रास्ते  आसान  तो मंजिलें दूर  थीं,
कभी मंजिलें खूबसूरत  तो राहें कांटों  भरी  थीं।

तूने खुद ही कभी राह में  फूल  बिछा दिए,
 तो  कभी  फूलों के बीच  कांटों  की  चुभन  दी थी,
पाँव में छाले दिए पर  शर्त  चलने  की रखी थी।

उससे  मिलने की  न ख्वाहिश की थी मैंने  कभी,
 ये तो  तूने ही अपना दिल बहलाने को  साजिश की  थी,
दिलों  में  आस जगाकर दिल तोड़  देना तेरी  पुरानी  आदत जो थी।

तूने  खुद  ही  ख्वाब  बुनने को  ताने -बाने दिए,
फिर  खुद ही  गांठ पर गांठ  लगाकर बुनाई तोड़ी थी,
और तेरी ही सलाइयाँ ताउम्र उलझे धागों को न सुलझा पाई थीं।

हम न समझे ज़िंदगी तेरा  खेल कभी,
खुशियाँ देना तेरी फ़ितरत है या गमों की ताबीर लिखना तेरी आदत थी,
तू न हारी ज़िंदगी तो मैंने भी कब हार मानी थी।
-अनिता जैन Weekend Shayar .Blogspot .in

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