Kitab
कविता : - किताब
आज हाथ लगी एक पुरानी किताब ,
जो साथ थी कॉलेज के ज़माने से ।
पन्ना -दर - पन्ना पलटा जो उसे,
कितने किस्से निकल आए बीते ज़माने से।
एक पन्ना, जिस पर सहेली के हाथों लिखा सवाल था,
उसके साथ बिताए हर पल की तस्वीर बनाता चला गया।
एक पन्ना, जिस पर तेरे नाम पर मेरा नाम लिखा था,
उस खुशी, जो हमारे तकरीबन हमनाम होने की थी, से भिगो गया।
एक पन्ना, जिस पर बचाया हुआ जेब खर्च अब भी रखा था, उस तोहफ़े, जो कभी खरीदा न गया, की याद दिला गया।
एक पन्ना, जिस पर कुछ सूखे हुए आसुओं के निशान थे,
तेरे किसी और का होने का एहसास दिला गया।
-अनिता जैन
आज हाथ लगी एक पुरानी किताब ,
जो साथ थी कॉलेज के ज़माने से ।
पन्ना -दर - पन्ना पलटा जो उसे,
कितने किस्से निकल आए बीते ज़माने से।
एक पन्ना, जिस पर सहेली के हाथों लिखा सवाल था,
उसके साथ बिताए हर पल की तस्वीर बनाता चला गया।
एक पन्ना, जिस पर तेरे नाम पर मेरा नाम लिखा था,
उस खुशी, जो हमारे तकरीबन हमनाम होने की थी, से भिगो गया।
एक पन्ना, जिस पर बचाया हुआ जेब खर्च अब भी रखा था, उस तोहफ़े, जो कभी खरीदा न गया, की याद दिला गया।
एक पन्ना, जिस पर कुछ सूखे हुए आसुओं के निशान थे,
तेरे किसी और का होने का एहसास दिला गया।
-अनिता जैन
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