Muhabbat

कविता : - मुहब्बत
ज़िंदगी वस्ले - यार के बिना भी बसर होती है,
 मुहब्बत दिलों की दौलत है कोई इल्ज़ाम नहीं,
जो सिसक -सिसक कर अंधेरों में आह भरती है।

एहसास- ए - कुरबत की खुशी दिलों में बसी होती है,
 मुहब्बत ख़ुदा की बंदग़ी है कोई रुसवाई नहीं,
कि,  इंसान की हिम्मत को तोड़कर रख सकती है।

धड़कनों की ग़म - ए- फ़ुरकत से गुफ्तगू होती है,
 मुहब्बत का ग़म भी गुल-ए - गुलिस्तां है दश्त - ए-सहरा नहीं, जो उड़-उड़कर हर - सू बिखर जाती है।
                                                   -अनिता जैन।

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इस बात का शुक्रगुज़ार रहूँगा।