कविता:- कितनी कोशिशें !!??
कविता:- कितनी कोशिशें !!?? कितनी कोशिशों कीं तेरे नाम को ज़ुबां पर न लाने की, काश एक कोशिश तुझे पुकारने की की होती, तो ज़िंदग़ी कुछ और होती। कितनी कोशिशें कीं तेरी आँखों से छलकते प्यार को नकारने की, काश एक कोशिश आँखों में डूबने की की होती, तो जिंदग़ी कुछ और होती। कितनी कोशिशें कीं तेरी चाप सुनकर रास्ते बदलने की, काश एक कोशिश तेरे साथ चलने की की होती, तो ज़िंदग़ी कुछ और होती। कितनी कोशिशें कीं तेरी आमद-ए-महफ़िल से कतराने की, काश एक कोशिश शिरकत की की होती, तो ज़िंदग़ी कुछ और होती। कितनी कोशिशें की अपने दिल में बसे तेरे प्यार को झुठलाने की, काश एक कोशिश इसे तेरे दिल की राह बताने की की होती, तो ज़िंदग़ी कुछ और होती। कितनी कोशिशें कीं उमंगों के पर कतरने की, काश एक कोशिश इनको परवाज़ देने की की होती, तो ज़िंदग़ी कुछ और होती। कितनी कोशिशें कीं तुझसे दूर जाने की, काश एक कोशिश पास आने की की होती, तो ज़िंदग़ी कुछ और होती। अनिता जैन weekendshayar. Blogspot.in