कविता: तुझे ही ख़ुदा समझ बैठा।
तेरे नाम की अर्ज़ियाँ ख़ुदा को देते-देते, ख़ुदा को ही भूल गया। अरसा बीता उसकी चौखट पर सर झुकाए,तुझे ही अपना ख़ुदा समझ बैठा।

तेरे इश्क में डूबे शेर लिखते- लिखते,ख़ुदा की बंदग़ी भूल गया। दिन रात सोचता हूँ तुझे,तुझे ही पाक़ क़ुरान समझ बैठा।

उस पुरानी झील के किनारे बैठ,लहरों को ताकना भूल गया। डूब जाता हॅूँ तेरी आँखों में, तुझे ही अपना समंदर समझ बैठा।
आसमां से दिन - रात का जो राब्ता  था, सब भूल गया।
तू ही शम्स तू ही क़मर, तुझे ही अपना आसमान समझ बैठा।

तन्हाई के आलम में ख़ुद को,अकेला समझना भूल गया।
तेरी यादों की तस्वीरों से घिरा, ख़ुद को आबाद समझ बैठा।

तेरे इश्क से दुनिया में रुसवाई होगी मेरी, ये भी भूल गया।
तेरे ख़्वाबों में खोए-खोए मुस्कुराने को, अपनी पूरी ज़िंदगी समझ बैठा।
इश्क को मंज़िल इज़हार से मिलती है,ये पूरी तरह से भूल गया।
तेरे ख़्यालों में जीने में ही,अपनी मुहब्बत को मुकम्मल समझ बैठा।
अनिता जैन weekendshayar
Word meaning :-
शम्स - सूरज (Sun)  क़मर - चाँद (moon)

Comments

Popular posts from this blog

इस बात का शुक्रगुज़ार रहूँगा।

मेरी जान तू उदास क्यूं है?