कविताः तुझको दुआ देता हूँ , खुद बरबाद हुए जाता हूँ ।

झरता है तू आखों के प्यालो से, बसता है पलकों के शामियाने में ।
प्यार इस कदर करता हूँ कि, हर खुशी तुझे नज़र किए जाता हूँl
तुझको दुआ देता हूँ,खुद बरबाद हुए जाता हूँl

जाता हूँ दर पे ख़ुदा की अपने हाल पर रहम माँगने,
पर झुकते ही सर सजदे में,तेरे ही हक में इबादत किये जाता हूँl
तुझको दुआ देता हूँ,खुद बरबाद हुए जाता हूँl

वादा करता हॅूँ हर रात खुद से न देखूँगा तुझे ख्वाबों  में,
पर पलक मूंदते ही हर ख्वाब तेरे ही नाम किए जाता हॅूँl तुझको दुआ देता हॅूँ, खुद बरबाद हुए जाता हूँ।

तेरे संग तय की राहों पर चाहता नहीं चलना,
पर हर राह पर तेरे नक्श- ए- कदमों की तलाश किए जाता हूँl
तुझको दुआ देता हॅूँ,खुद बरबाद हुए जाता हूं।

कभी ज़िक्र नहीं होता तेरा मेरे कामों की फ़ेहरिस्त में,
पर अनचाहे अनजाने ही अपने शामो - सहर तेरे नाम किए जाता हूँl
तुझको दुआ देता हूँ,खुद बरबाद हुए जाता हॅूँl

सोचता हूँ तुझको,चाहता हॅूँ तुझको हर वक्त बेख़याली में,
पर इस गिरह से  फिर भी आज़ाद होने की कोशिश किए जाता हूँl
तुझको दुआ देता हूँ , खुद बरबाद हुए जाता हूँl

जितना चाहूँगा तुझे गिरता जाऊँगा गुनाहों के सागर में, इसलिए अपनी हसरतों का हर रोज़ कत्ल- ए- आम किए जाता हूँl
तुझको दुआ  देता हूँ,खुद बरबाद हुए जाता हूँ ।

जल्द हो जाऊँगा रुखसत उन से फँसा हूँ जिन जंजालों में, साँसें गिनती की बची हैं फिर भी, हर साँस तेरे नाम किए जाता हूँl
तुझको दुआ देता हूँ,खुद बरबाद हुए जाता हूँl
अनिता जैन @ weekendshayar.blogspot.in

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इस बात का शुक्रगुज़ार रहूँगा।