इस जहाँ से किनारा कर लूँ

इस जहाँ से किनारा कर लूँ
जिंदगी का सफ़र तन्हा मुश्किल लगता है मुझ को,
आ कि,हमसफ़र तेरा हाथ थामकर जहाँ से किनारा कर लूँl

पथरीली राहों में डगमगाऊँ तो तू थाम ले मुझको,
आ कि,सर तेरे काँधे पे रखके शाम को सहर कर लूँl

इज़हार- ए -मुहब्बत न करूँ ज़ुबां से तू खुद ही समझ ले मुझको,
आ कि, इस जहाँ से चुराकर तुझे निगाहों में भर लूँl

जिंदग़ी के दिए ज़ख्मों से दिल जो दर्द दे मुझको,
आ कि, चार अश्क तेरे काँधों पे बहा के मैं सुकून कर लूँl

तू साथ होता है तो हर राह आसान लगती है मुझको,
आ कि, भुलाकर शिकवे -गिले सफर -ए-ज़िंदग़ी तेरे संग तय कर लूँl

जो ख़ुशियाँ दामन में भर-भर कर दी तूने मुझको,
आ कि,उनसे चमन सजाके अपना अपने नसीब पर फ़क्र कर
लूँl

मेरे घोंसले के नन्हें परिंदे उड़ चले अपना नशेमन बसानेको,
आ कि, तुझसे गुफ्तगू कर उनका बचपन याद कर लूँl
आ कि, तेरा हाथ थामकर जहाँ से किनारा कर लूँl

 अनिता जैन weekendshayar.blogspot.in

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