कविताः हमेशा के लिए सो जाने दो
कविताः हमेशा के लिए सो जाने दो
झूठी हँसी में लिपटे तेरे-मेरे अश्कों की नुमाइश बहुत हुई।तबाह जिस्मो - रूह के सायों से ज़िंदग़ी के गुलशन की बरबादी बहुत हुई।
दिल कहता है अब बेमौसम बादल बरस जाने की रुत आने दो।
बेताबी कहती है अब खयालों के जंगलों से हकीकतों के रास्ते तय पा जाने दो ।
तड़पते अरमानों की झुलसती आग मेें खुद को झोंकने की कवायद बहुत हुई।
बेलौस बहते आँसुओं के दरिया में दरो- दीवार के साथ डूब जाने की कोशिश बहुत हुई।
माथे की शिकन मिटाकर कोयल के मीठे नग़मे के साथ प्यार का साज़ बज जाने दो।
मुस्कुराकर लाल पीले फूलों को इन ज़ुल्फ़ों में सज जाने दो
बारिश के मौसम के साथ आँसुओं के सैलाब बहा लेने की रवायत बहुत हुई।
हँसते - गाते पंछियों के सुर में अपनी आहें मिलाकर छुपाने की नाकाम साज़िश बहुत हुई।
तुम्हारी जुदाई का ग़म सहकर मैं ज़िंदा हॅूँ इस बात की दावत हो जाने दो।
मुझसे बिछड़ कर तुम खुश और आबाद हो इस बात का जश्न हो जाने दो।
टूटे दिल की धमक से मुरझाए चेहरे को झूठे श्रृंगार से सजाने की तकलीफ़ बहुत हुई।
खुद को फर्ज़ की भट्टी में झोंककर तुझे भूल जाने की कसरत बहुत हुई।
अब चला नहीं जाता नक्श - ए-कदमों पर अपने कदमों की छाप मिट जाने दो।
महीनों से उनींदी आँखों को ख्वाब न दो गहरी नींद में सो जाने दो।
खिली चाँदनी में लुटे अरमानों के सोग में तकिए आँसुओं से तर करने की फ़ितरत बहुत हुई।
ख़ुद को हवा के झोंके के साथ इधर -उधर बहा ले जाने की आज़माइश बहुत हुई।
न जीता हूँ ठीक से न मरने ही पाता हॅूँ पूरी तरह, इस जद्दोजहद से दिल को आज़ाद हो जाने दो।
थक गया हूँ तुम्हें ख्यालों से बेदख़ल करने की कोशिश में
अब मुझे बेखबर हमेशा के लिए सो जाने दो।
अब मुझे बेख़बर हमेशा के लिए सो जाने दो ।Anita Jain wee weekendshayar.blogspot.in
झूठी हँसी में लिपटे तेरे-मेरे अश्कों की नुमाइश बहुत हुई।तबाह जिस्मो - रूह के सायों से ज़िंदग़ी के गुलशन की बरबादी बहुत हुई।
दिल कहता है अब बेमौसम बादल बरस जाने की रुत आने दो।
बेताबी कहती है अब खयालों के जंगलों से हकीकतों के रास्ते तय पा जाने दो ।
तड़पते अरमानों की झुलसती आग मेें खुद को झोंकने की कवायद बहुत हुई।
बेलौस बहते आँसुओं के दरिया में दरो- दीवार के साथ डूब जाने की कोशिश बहुत हुई।
माथे की शिकन मिटाकर कोयल के मीठे नग़मे के साथ प्यार का साज़ बज जाने दो।
मुस्कुराकर लाल पीले फूलों को इन ज़ुल्फ़ों में सज जाने दो
बारिश के मौसम के साथ आँसुओं के सैलाब बहा लेने की रवायत बहुत हुई।
हँसते - गाते पंछियों के सुर में अपनी आहें मिलाकर छुपाने की नाकाम साज़िश बहुत हुई।
तुम्हारी जुदाई का ग़म सहकर मैं ज़िंदा हॅूँ इस बात की दावत हो जाने दो।
मुझसे बिछड़ कर तुम खुश और आबाद हो इस बात का जश्न हो जाने दो।
टूटे दिल की धमक से मुरझाए चेहरे को झूठे श्रृंगार से सजाने की तकलीफ़ बहुत हुई।
खुद को फर्ज़ की भट्टी में झोंककर तुझे भूल जाने की कसरत बहुत हुई।
अब चला नहीं जाता नक्श - ए-कदमों पर अपने कदमों की छाप मिट जाने दो।
महीनों से उनींदी आँखों को ख्वाब न दो गहरी नींद में सो जाने दो।
खिली चाँदनी में लुटे अरमानों के सोग में तकिए आँसुओं से तर करने की फ़ितरत बहुत हुई।
ख़ुद को हवा के झोंके के साथ इधर -उधर बहा ले जाने की आज़माइश बहुत हुई।
न जीता हूँ ठीक से न मरने ही पाता हॅूँ पूरी तरह, इस जद्दोजहद से दिल को आज़ाद हो जाने दो।
थक गया हूँ तुम्हें ख्यालों से बेदख़ल करने की कोशिश में
अब मुझे बेखबर हमेशा के लिए सो जाने दो।
अब मुझे बेख़बर हमेशा के लिए सो जाने दो ।Anita Jain wee weekendshayar.blogspot.in
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