Mera paigam

कविता : - मेरा पैग़ाम । 
चलने लगी फ़ागुनी बयार,
 कि खिड़कियाँ खुली रखना,
कोई  हवा का झोंका,
 मेरा पैग़ाम लाता ही होगा।

उड़ने लगे रंग, अबीर और गुलाल,
जी भर के होली खेलना,
कि हर रंगे - पुते चेहरे में,
मेरा चेहरा नज़र आता ही होगा।

गर्मी की तपती दुपहरी में,
 लेटे-लेटे छत को ताकते रहना,
 कि उसमें कहीं हँसता हुआ,
मेरा अक्स नज़र आता ही होगा।

 सावन की फुहारों में,
 भीग-भीग कर दूर निकल जाना,
कि इन फुहारों में मेरा प्यार,
तुम्हारे चेहरे को सहलाता ही होगा।

पतझड़ के पत्तों की खड़खड़ाहट को,
 कान लगाकर सुनना,
कि उनमें मेरी सदाओं का,
 संगीत सुनाई देता ही होगा।

 सर्दी की ठंडी  रातों  में,
 अलाव जलाकर रखना,
कि उठती - गिरती लपटों में मेरा चेहरा,
 कभी गायब कभी नुमाया होता ही होगा।

 हर मौसम में अपने जी में,  आस जगाए रखना,
 कि खुदा हमारे प्यार की,
 पाकीज़गी को परखता ही होगा। -अनिता जैन Weekend shayar.in

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इस बात का शुक्रगुज़ार रहूँगा।