Khushiyon ke moti

कविता : - बटोर लाया हूँ खुशियों के मोती इस सफ़र में।
मैं बेपरवाह पंछी सा उड़ता हूं गगन में,
चाहे खिजां हो या या बहार हो चमन में।
 पर तो काट दिए थे उनकी  बेरुखी ने,
 पर उड़ सकता हॅूँ हौसले के भरम में।
 जिसने पार कर लिए हों सागर दुख के,
वो डूब नहीं सकता चुल्लू  भर दुख के ग़म में।
वो सितम करते हैं अपने झूठे गुरुर के दम पे,
 मैं हंसकर छोड़  देता हूँ उनको दलदल - ए - शरम में।
सैलाब - ए - ग़म पार कर आया हूं जतन से,
बटोर लाया हूं खुशियों के मोती इस सफ़र में।
-अनिता  जैन Weekendshayar .blogspot.in

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